Tuesday 25 September 2012

लोकार्पण ::


२३ सितम्बर २०१२, जब हम श्री नथमल केडिया जी के अस्थाई निवास पर पंहुचे, उमस भरी साँझ ने अपने तेवर बदल कर स्वयं को काव्यानुकूल कर दिया था..
अवसर था, ८५ वर्षीय श्री नथमल केडिया जी की पुस्तक स्तुति नति प्रणति के लोकार्पण का एवं उनसे हमारे प्रथम साक्षात्कार का . घर पर ही कुछ कवि मित्रों के साथ, मित्रों के ही द्वारा पुस्तक का विमोचन.....  किसी भी पुस्तक का इतना अनौपचारिक  इतना सहज लोकार्पण मेरे लिए आश्चर्य मिश्रित आनन्दानुभूति थी. विमोचन कार्यक्रम व सभी को श्री केडिया जी के यहाँ सायंकाल 4.30 बजे पहुँचने का आमंत्रण डॉ अंजना संधीर जी ने ही दिया. सभी कवि मित्र नियत समय पर उपस्थित हो गए. सभी का परिचय डॉ अंजना संधीर जी ने श्री केडिया जी से कराया, तदुपरांत उनकी पुस्तक के विमोचन के लिए सभी ने उनकी पुत्र वधू श्रीमती साधना जी से आग्रह किया , परन्तु उन्होंने यह उत्तरदायित्व डॉ अंजना संधीर जी को सौंप दिया .
लोकार्पण पर श्री केडिया जी ने पुस्तक के कुछ अंश पढ़ कर सुनाये, बताया कि इस पुस्तक में महाभारतके मुख्य पात्रों जैसे कि भीष्म, महर्षि व्यास ,श्रीकृष्ण, आदि की विवेचना की गयी है. श्री केडिया जी के संबोधन के उपरांत काव्य-पाठ के संचालन की बागडोर संभालते हुए डॉ अंजना जी ने अपर्णा मनोज को अपनी कविता सुनाने के लिए कहा. अपर्णा जी की रचना पुराने शीशेमें सभी ने अपना अक्स देखा और अपनी बारी का इंतज़ारकिया
 गंभीर हो चुके वातावरण को हल्का किया श्री द्वारिका प्रसाद साँचीहर जी के मधुर कंठ से निकले गीतों ने . गीत की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार थीं :-

मन ही मन उन्मन जीवन ,
 मौन मौन को गाता रहता
 खिडकी, दरवाजे, गवाक्ष          
मैं मुझसे बतियाता रहता ---

मन की अंगुली छू नहीं पाता
आभाषित दृश्यों की काया.
अनुभूति ने आँख मूँद ली .
अभिव्यक्ति ने मुँह बिजकाया

चकरा चकरा एक कबूतर
कमरे में इतराता रहता

कांच कांच सपना क्षत-विक्षत
जादू बनता, टोने बुनता
संध्या का एकाकीपन –
छिप जाने को कोने गिनता

बाबा रामदेव के योग से प्रभावित बहु आयामी व्यक्तित्व श्री आत्मप्रकाश कुमार जी ने अपनी गज़ले सुनाकर सभी को आनंदित किया .इस गोष्ठी में लिए गए सभी चित्रों का श्रेय इन्हीं को जाता है.

जब इंसान खुदा के घर गया
देख कर उसको खुदा भी डर गया

मुझे (ज्योत्स्ना पाण्डेय) प्रोत्साहित करते हुए वरिष्ठ जनों ने कविताएं सुनने को कहा. मैंने अपनी दो रचनायें  विद्रोही आंचतीसरी तरह के लोगसभी के सामने प्रस्तुत की

साहित्य और संगीत अद्भुत संयोजन डॉ प्रणव भारती जी ने अपने सुमधुर कंठ से गज़ल प्रस्तुत की—
क्या गुलाबी, गुलाब चेहरा हुआ
चाँद सा , लाजवाब चेहरा हुआ .
खुल गया भेद, कौन क्या क्या था
जब कभी बेनकाब चेहरा हुआ
उसने देखा , जो एक नज़र मुझको
शर्म से आब आब चेहरा हुआ ....

 हाईकू रचनाओं के विशेषज्ञ श्री आर सी शर्मा जी चंद्रने मित्रों के अनुरोध पर कुछ हाईकू सुनाये , फिर एक गज़ल और गीत सुनाया .
आप से क्या छिपाना है
बीहड़ों में घर बनाना है
देह से नाता पुराना है
निभ सके जब तक, निभाना है

 डॉ अंजना संधीर – जिन्होंने अमेरिका में रहकर हिन्दी के प्रचार प्रसार को बढ़ावा दिया और आज भी हिन्दी के लिए नि:स्वार्थ अपना योगदान दे रही हैं उन्होंने अमेरिका में बसने के लिए भारतीय युवकों की लालसा और उन लड़कियों की दशा जिन्हें ये युवक अपने देश से ब्याह कर ले जाते हैं, को अपनी कविता ग्रीन कार्ड होल्डरके माध्यम से बहुत ही प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त किया .
फिर एक गज़ल भी सुनायी –
होंठ चुप हैं निगाह बोले है
आँख सब दिल का राज़ खोले है

कार्यक्रम के अंत में श्री केडिया जी ने सभी के आग्रह पर कविता आत्मा पालन केंद्रसुनायी . सब बड़े बड़े लोग/व्यापारी, नेता , अफसर , अभिनेतास्थायी रूप से अपनी आत्मा यहीं छोड़ गए हैं/ और सफलता की  सीढियां चढ़ गए हैं./ नैतिकता के आवरण में छिपे लोगों के ज़मीर को चुनौती देती है यह रचना.
एक छोटी रचना – सूर्य एक महान साहित्यकार, सर्जक
                     सृजन करे ,
                     चाँद समर्थ अनुवादक
                     जो धूप का अनुवाद करे चाँदनी में

स्वभाव से सरल श्री केडिया जी की कविताएं उस सेतु की तरह हैं जो आज की युवा पीढ़ी को अनुभव के अनेक द्वीपों पर ले जाने में ,व उनसे लाभ लेने में सहायक हैं.

श्री केडिया जी के पुत्र श्री प्रदीप जी एवं पुत्रवधू श्रीमती साधना जी ने  सुस्वादिष्ट अल्पाहार की व्यवस्था की और अत्यंत आत्मीयता से आव भगत की












ज्योत्स्ना पाण्डेय